बाल संसद

 

पिछले वर्षों में, इस संसद ने कई महत्वपूर्ण सार्वजनिक विषयों पर अपने गंभीर संसदीय हस्तक्षेपों से सरकार को सार्थक एवं जनोपयोगी फैसलों तक पहुंचने में सहयोग किया है। बाल श्रमिक आयोग, महिला आयोग तथा डायन प्रथा निषेध जैसे महत्वपूर्ण फैसले सामाजिक कानून के इतिहास में हमेशा याद किए जाएंगे।

 

बच्चे भारत की कुल आबादी का पांचवा हिस्सा हैं। ऐसे में, इनके अधिकारों को लेकर की जानेवाली बहसें इस सच्चाई का पुख्ता सबूत हैं कि वे अपने वाज़िब अधिकारों से वंचित हैं। मगर इस दिशा में कागज़ी खानापुरी की बजाय ठोस और बुनयादी काम करने की संजीदगी कुछ थोड़े से संस्थानों या संस्थाओं में ही देखने को मिल पाती है। बिहार विधान परिषद्, इस लिहाज से, बच्चों के अधिकारों के प्रति अत्यंत जागरूक और सक्रिय विधायी संस्था मानी जाएगी।

 

मैं तो यह मानता हूँ कि जब तक राजनीतिक पार्टियाँ, देश की संसद और राज्यों की विधायिकाएं इसे अपनी कार्य-सूची में, अपने एजेंडा में सर्वोच्च स्थान नहीं देंगी, हम बाल-पीढ़ियों के साथ संवैधानिक न्याय नहीं कर सकते। -- जाबिर हुसेन

 

13 अक्तूबर, 2001को बिहार विधान परिषद् की मताधिकार समिति और मानवाधिकार समिति और यूनिसेफ द्वारा आयोजित बाल संसद विधान परिषद् के जन-सरोकारों में एक नया अध्याय जोड़ती है। राज्य के विभिन्न जिलों से आए तकरीबन दो सौ बच्चों ने अपनी सहज भाषा में अपनी समस्याओं से जुड़े सवाल उठाए और अपनी अपेक्षाओं को रेखांकित किया। बाल संसद की बहस में भाग लेते हुए बाल सांसदों ने 'युद्ध से बच्चों की रक्षा', 'बच्चों के अधिकार', 'हरेक बच्चे को भोजन तथा शिक्षा', 'सैन्य संघर्ष में बच्चे', 'धरती की सुरक्षा बच्चों के लिए' तथा 'गरीबी के खिलाफ युद्ध', 'बच्चों में निवेश' आदि विषयों पर अपना प्रभावी पक्ष प्रस्तुत किया। दिन भर चले इस ऐतिहासिक आयोजन में सभापति प्रो. जाबिर हुसेन के अतिरिक्त, बिहार की तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती राबड़ी देवी, श्री लालू प्रसाद, यूनिसेफ पटना की राज्य प्रतिनिधि श्रीमती जीन पी. गॉफ़ तथा सूचना एवं जनसंपर्क पदाधिकारी अगस्टीन बेलियथ ने अपनी सक्रिय भागीदारी दर्ज की।

 

15 सितंबर, 2002को बाल संसद श्रृंखला की दूसरी कड़ी में, राज्य भर से आए बच्चों ने अपनी संसद में भाग लेते हुए विकटतर होती अपनी समस्यायों पर बड़ों को पुनः सोचने के लिए मजबूर किया। बाल सांसदों ने लिंग-भेद, बाल मजदूरी, शिक्षकों द्वारा गैर शैक्षणिक कार्य, अज्ञात बीमारी से बच्चों की मौत, खेलकूद के समुचित अवसर, देहात के बच्चों को समान अवसर, विद्यालयों में आधारभूत संरचना की कमी, शिक्षा का राष्ट्रीयकरण, बच्चों का स्वास्थ्य, दहेज प्रथा जैसी कुरीति, पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण, धार्मिक असहिष्णुता तथा बच्चों की विकलांगता आदि विकट समस्याओं के संदर्भ में आवाज बुलंद की।

 

बाल संसद को मुख्य अतिथि के रूप में प्रख्यात शायर और फिल्मकार गुलजार के अतिरिक्त सभापति प्रो. जाबिर हुसेन, मानवाधिकार समिति के अध्यक्ष प्रो. अरूण कुमार, तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती राबड़ी देवी, यूनिसेफ की श्रीमती जीन पी. गॉफ एवं अगस्टीन वेलियथ ने भी संबोधित किया।

 

29 जुलाई, 2005को एक बार पुनः बच्चों की संसद आयोजित हुई जिसका उद्घाटन महामहिम राज्यपाल डॉ. सरदार बूटा सिंह ने किया। इस आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में जाने माने फिल्मकार एवं समाजकर्मी फारूख शेख भी उपस्थित थे।

 

बिहार विधान परिषद्, यूनिसेफ तथा बचपन बचाओ आंदोलन के तत्वाधान में आयोजित इस बाल संसद में बच्चों ने एक बार फिर अपने अधिकारों एवं समस्याओं के ठोस निदान की दिशा में सरकार एवं बड़ों से कारगर कदम उठाने की मांग की।